Role of Nano Technology in Precison farming

परिशुद्ध खेती में नैनो तकनीकी का महत्व | Role of Nano Technology in Precison farming

संयुक्त राष्ट्र के वर्तमान आकड़े के अनुसार वर्ष 2050 तक विश्व की कुल आबादी बढ़कर 9.1 बिलियन (लगभग 900 करोड़) तक पहुच जाएगी। सम्पूर्ण आबादी में आशातीत वृद्धि विकसित देशों की सापेक्ष विकाशील देशों में ज्यादा होगी। जिसके फलस्वरूप विश्व स्तर पर जमीन की उपलब्धता, खाद्यान, चारा, रेशा एवं ईधन की आवश्यकता दुगुनी हो जाएगी। वर्तमान समय में विश्व की औसत प्रति व्यक्ति फसल जमीन की उपलब्धता घटकर लगभग 0.27 हेक्टेयर हो गई है। खाद्य एंव कृषि संगठन के अनुसार कृषि जमीन का विस्तार करना संभव ही नहीं बल्कि नामुमकिन है। 

उन्नत तकनीकी तथा संसाधनों के समावेश के बिना बढ़ती हुई जनसंख्या का उदरपूर्ति नामुमकिन है। विश्व आबादी का भारत वर्ष 17.84 प्रतिशत हिस्सा का प्रतिनिधित्व करता है। वर्तमान में भारत की कुल आबादी 1.30 अरब के आस-पास है परंतु जिस तरीके से जनसंख्या में निरंतर वृद्धि जारी है, आने वाले वर्ष 2025 तक भारत की कुल आबादी 1.5 अरब तक पहुँच जाएगी। वर्तमान में भारत के अंदर प्रति व्यक्ति भूमि की उपलब्धता 0.10 हेक्टेयर है जो विकसित देशों के मुकाबले बहुत ही कम है। आबादी बढ़ने के कारण आज जहां खाद्य पदार्थ की आवश्यकता 330 मिलियन टन है वही आने वाले वर्ष 2050 तक खाद्यान की मांग लगभग 500 मिलियन टन के आस-पास पहुँच जाएगी। 

बढ़ती आबादी के फलस्वरूप एक तरफ भूमि तथा जल के लिए प्रतिस्पर्धा वही दूसरी तरफ सीमित भूमि तथा गांवों से शहरों के तरफ लोगों का पलायन एंव खेती में लागत बढ़ने के कारण खेती से पलायन तथा जलवायु संकट के कारण भविष्य में खाद्य संकट गहरा सकता है। हाल ही में वैश्विक भुखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2022) के द्वारा प्रस्तुत सूचकांक में भारत देश 29.1 अंक के स्कोर के साथ 107 वें पायदान पर पहुँच गया है, ऐसे में यह आकड़े दर्शा रहे है कि भारत में भी भुखमरी की गंभीर स्थिति है। ऐसी स्थितियों से अगर समय रहते खेती में नई तकनीकी का समावेश, समागम तथा उपयोग नहीं किया गया तो आने वाले भविष्य में भारत देश एक गहरे खाद्य संकट के दौर से गुजर सकता है।

 आज भारतीय कृषि पर्यावरणीय चुनौतियों यानि स्थिरता, बेहतर पौधों की किस्मों का विकास, सुधार, उत्पादकता में वृद्धि और प्राकृतिक संसाधनों (भूमि, जल, वनस्पति) के समाधान पर ही केंद्रित है। परंतु आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है अर्थात समय-समय पर जरूरतों तथा मांग के अनुरूप परिवर्तन आवश्यक समझा जाता है। बढ़ती आबादी, जलवायु संकट, कम उत्पादकता, खेती में अधिक लागत आज खेती के लिए एक प्रमुख समस्या है। ऐसी गंभीर चुनौतियों से निपटने के लिए खेती में एक प्रभावी प्रणाली की आवश्यकता महसूस की गई जो लागत को काम रखते हुए प्राकृतिक संसाधनो का समुचित मात्रा में उपयोग करते हुए नवीन तकनीकी के साथ समागम कर के गुणवक्तायुक्त उत्पाद को पैदा किया जाए, साथ ही साथ पर्यावरणीय असंतुलन के हानिकारक प्रभावों को भी खेती में कम से कम किया जा सके। वर्तमान में आज जिस प्रणाली पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है उस प्रणाली को ही सटीक खेती अथवा परिशुद्ध खेती की संज्ञा दी जा रही है।

परिशुद्ध/सटीक खेती की संकल्पना:

फसल की मांग के अनुरूप उत्पादन के इनपुट (उर्वरक, कीटनाशक, खरपतवारनाशक, जल प्रबंधन आदि ) को सही मात्रा, सही समय, सही विधि, तथा सही जगह पर प्रयोग करते हुए उत्पादन लागत को कम करना तथा अधिकतम उत्पादन प्राप्त करना ही इसका अंतिम उद्देश्य है। परिशुद्ध खेती 4-R के सिद्धांत पर कार्य करती है। परिशुद्ध खेती के अंतर्गत कंप्यूटर, वैश्विक उपग्रह पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस), भूवैज्ञानिक सूचना प्रणाली (जीआईएस),) और रिमोट सेन्सिंग (आरएस) उपकरणों का उपयोग किया जाता है। इन उपकरणों के प्रयोग से ही स्थानीय पर्यावरणीय तथा मृदा की परिस्थितियों का आकलन तथा मापन किया जाता है। इसके अतिरिक्त यह निर्धारित किया जाता है कि भूमि की उर्वरता विभिन्नता की ठीक-ठीक पहचान कर निवेश/इनपुट का सही समय पर प्रयोग करके फसलों की दक्षता को बढ़ाया जा सकता है, जिससे पर्यावरणीय प्रदूषण, मृदा प्रदूषण को न्यूनतम स्तर पर रखा जा सकता है। परिशुद्ध खेती के अवयव के रूप में ही आज खेती में नैनो तकनीकी का प्रयोग करने पर वैज्ञानिकों तथा सरकारों के द्वारा उसके प्रयोग की संस्तुति किसानों के लिए की जा रही है।

नैनो तकनीकी का कृषि तथा संबंधित विज्ञान में अनुप्रयोग:

कृषि में नैनो तकनीकी का प्रयोग अभी प्रारम्भिक अवस्था में है परंतु इसके समुचित प्रयोग से उत्पादकता को बढ़ाने के साथ ही फसल लागत को कम रखा जा सकता है। आधुनिक खोजों के आधार पर यह पाया गया है कि पौधे के प्रजनन और आनुवंशिक सुधार के लिए जानकारी जुटाने में भी नैनो तकनीकी सफल साबित होगी। नैनो तकनीकी का प्रादुर्भाव सन 1974 में “नोरिओ तानिगूची” नामक वैज्ञानिक ने किया था। कालांतर में “इरीक डरेक्सलेर” नामक वैज्ञानिक ने स्वतंत्र रूप से इसको प्रतिपादित किया। भारत में आई.आई.टी., मुंबई देश का अग्रणी संस्थान है जो नैनो तकनीकी पर कार्य कर रहा है। नैनो तकनीकी में नैनो कणों का आकार छोटा प्रायः 1-100 नैनोमीटर होता है। नैनो तकनीकी का प्रयोग कृषि में खाद्य प्रौद्योगिकी,फसल सुधार (आनुवांशिक संशोधित फसलें) बीज प्रौद्योगिकी, परिशुद्ध खेती, संतुलित फसल पोषण के लिए नैनो उर्वरक, फसलों के रोग निदान , खरपतवार प्रबंधन, कीट प्रबंधन, तथा बायोसेन्सर में किया जाता है।

नैनो तकनीकी से व्युत्पन्न विभिन्न उत्पाद

नैनो उर्वरक

नैनो उर्वरक का आविष्कार डॉ जगदीश चंद्र नामक वैज्ञानिक के द्वारा विकसित किया गया है। नैनो उर्वरकों में प्रमुख रूप से नैनो यूरिया, नैनो डी.ए.पी., नैनो फास्फोरस, नैनो जिंक, आदि प्रमुख रूप से बाजार में स्वतंत्र रूप से उपलब्ध है,परंतु इसका खेती में प्रयोग भारत के किसानों के द्वारा सीमित मात्रा में किया जा रहा है क्योंकि भारतीय किसान अभी इस तकनीकी से पूर्ण रूप से जागरूक नहीं है।

नैनो यूरिया

रासायनिक उर्वरकों की लगातार बढ़ती खपत का सीधा प्रभाव अनुदान पर पड़ता है। अतः इसका सीधा प्रभाव सरकार के खजाने पर पड़ता है। आकड़ों के अनुसार वर्ष 2020- 2021 में 80,000 करोड़ रुपये का अनुदान किसानों को दिया गया था। लागातर अनुदान के बढ़ते खर्च तथा रासायनिक उर्वरकों के असंतुलित प्रयोग के कारण मृदा उत्पादकता का क्रमश: ह्रास होता चला गया और भूमि बंजर होने के कगार पर चली गई। नैनो यूरिया में कणों का आकार प्रायः 20-50 नैनो मीटर होता है। सामान्य यूरिया की तुलना में इसका पृष्ठ सतह और आयतन लगभग 10,000 गुना अधिक होता है। इफको (IFFCO) के द्वारा बनाए गए नैनो यूरिया 500 मिली लीटर के बोतल में उपलब्ध है जो 45 किलोग्राम यूरिया के समतुल्य कार्य करती है। 500 मिली लीटर वाले नैनो यूरिया की कीमत 240 रुपये है वही एक बोरी यूरिया (45 किग्रा) बाजार में कीमत 350 रुपये है।

नैनो डी.ए.पी.

इफको (IFFCO) के द्वारा हाल ही में नैनो डीएपी का आविष्कार किया गया है जो कृषि मंत्रालय तथा उर्वरक नियंत्रण बोर्ड के द्वारा उसके प्रयोग की अनुमति प्राप्त हो गई है। यह उर्वरक 500 मिलीलीटर के बोतल में बाजार में उपलब्ध है जो 50 किलोग्राम के बोरी वाले डीएपी के समतुल्य कार्य करता है। आज जहा एक बोतल नैनो डीएपी की कीमत 600 रुपये है वही एक बोरी डीएपी की कीमत 1350 रुपये होती है।

नैनो सेंसर

नैनो सेंसर के द्वारा फसलों के स्वास्थ्य, रोग, कीट की निगरानी आसानी से किया जा सकता है जिससे समय रहते उनका प्रबंधन आसानी से सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

नैनो चिप-लैब

यह तकनीकी का प्रयोग फसल अनुसंधान, (आनुवांशिक संशोधित फसलें), फसल सुधार तकनीकी में विकसित देशों में किया जा रहा है।

नैनोकणों के प्रयोग की विधिया:

पत्तियों पर छिड़काव

पौधे की पत्तियों की ऊपरी सतह पर रंध्र होते है जिसकी सहायता से भी पौधे पोषण प्राप्त करते है। इसके लिए नैनो उर्वरकों यथा नैनो यूरिया की 2-4 मिली मात्रा को प्रति लीटर पानी (250 मिली/एकड़ 125 लीटर पानी) में मिलाकर खड़ी फसल पर छिड़काव करने से प्रकाश संश्लेषण के साथ स्रोत से उपयोगी भागों तक पहुँच जाता है।

मिट्टी में मिलाकर प्रयोग

नैनो जिंक के मिश्रण का प्रयोग अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिलाकर किया जा सकता है। इससे पौधे अपनी जड़ों से इसे अवशोषित कर पोषण प्राप्त करते है।

बीज उपचार

एक निश्चित मात्रा के नैनो कणों को पानी में घोलकर मिश्रण तैयार कर लेते है। फिर उस तैयार घोल में बीजों को 24-48 घंटों तक रखना चाहिए जिससे नैनो कण घुलित अवस्था में बीजों के गहराई में पहुँच कर नवपादप बनने के समय पोषण देने का कार्य करे।

महत्व

नैनो तकनीकी कृषि में एक क्रांति की तरह कार्य कर रही है। इस तकनीकी के प्रयोग से फसल का उत्पादन बढ़ाने के साथ ही लागत की मात्रा को काम किया जा सकता हैं। नैनो कणों के प्रयोग से फसल के प्रति प्रतिक्रिया जल्दी तथा स्थायी होती है जिससे प्रति इकाई भूमि से अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। नैनों कणों के प्रयोग से मृदा, वायु तथा जल प्रदूषण जैसी समस्या नहीं उत्पन्न होती है।

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